Saturday, September 19, 2009

अपनी नज़रों में हर इंसान िसकंदर क्यों है?

आज के दौर में ए दोस्त ये मंजर क्यों है?
ज़ख्म हर सर पे, हर हाथ में पत्थर क्यों है?

जब हकीक़त है कि हर जर्रे में तू रहता है,
फिर ज़मीन पर कहीं मस्जिद, कहीं मंदिर क्यों है?

अपना अंजाम तो मालूम है सबको फिर भी,
अपनी नज़रों में हर इंसान िसकंदर क्यों है?

ज़िंदगी जीने के काबिल ही नही अब 'फ़कीर',
वर्ना हर आँख में अश्कों का समुन्दर क्यों है?

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